2025 AI Race: Energy, Not Compute glut to Crown the AI Superpower
Greed & Fear: AI की रेस में चीन बनेगा किंग! अमेरिका की होगी 'बिजली' गुल
Greed & Fear: अगर मैं आपसे कहूं कि पूरी दुनिया में अकेला कौन सा सेक्टर या थीम है, जो भविष्य में दुनिया की दशा और दिशा तय करेगा, आपका जवाब होगा आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी AI. आपका जवाब बिल्कुल सही है, कुछ और भी है जिसे शायद हम देख नहीं पा रहे हैं, लेकिन ये मुद्दा दुनिया में गरमा रहा है.
जेफरीज की प्रतिष्ठित “GREED & FEAR” सीरीज की ताजा रिपोर्ट में एक सनसनीखेज दावा किया गया है वो ये कि AI की ग्लोबल रेस में वही जीतेगा और जियो पॉलिटिकल प्रभुत्व उसी का होगा, जिसके पास ऊर्जा होगी, और इस रेस में चीन अमेरिका से कई कदम आगे निकल चुका है. रिपोर्ट कहती है कि सस्ती, भरपूर और लगातार निर्बाध बिजली के बिना न तो AI का अगला चरण संभव है और न ही अमेरिका अपनी तकनीकी श्रेष्ठता बरकरार रख पाएगा, लेकिन चीन ने बैटरी स्टोरेज और सोलर की जोड़ी से यह समस्या हल कर ली है और भी बिना किसी ग्रीन एजेंडा.
जिसके पास ऊर्जा, वही जीतेगा AI की रेस
दरअसल, AI मॉडल जितने बड़े होते जा रहे हैं, उन्हें चलाने के लिए उतनी ही विशाल ऊर्जा की जरूरत पड़ रही है. क्लाउड कंपनियां जितना पैसा चिप्स और डेटा सेंटर्स पर खर्च कर रही हैं, उससे ज्यादा चिंता उन्हें अब बिजली की उपलब्धता को लेकर है. यही वजह है कि AI की ये रेस अब टेक्नोलॉजी की नहीं, बल्कि एनर्जी डॉमिनेंस की लड़ाई बन चुकी है, इस लड़ाई में चीन सबसे पीछे छोड़कर आगे निकलता हुआ दिख रहा है. ये बात कोई और नहीं टेक वर्ल्ड के टॉप लीडर्स कह रहे हैं, जिनके सारे इनोवेशन AI के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं.
भले ही अमेरिका ने वर्तमान में AI की दुनिया में अपना सिक्का जमा रखा हो, लेकिन रेस तो अभी शुरू हुई है, क्योंकि अमेरिका के सामने चीन खड़ा है और सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आया है. 5 नवंबर को लंदन में फाइनेंशियल टाइम्स के एक कार्यक्रम में Nvidia के CEO जेंसन हुआंग ने जो बात कही उसने पूरी टेक इंडस्ट्री के हिलाकर रख दिया. हुआंग ने कहा कि चीन AI की दौड़ जीतने जा रहा है, क्योंकि चीन में बिजली लगभग मुफ्त है. हुआंग ने बताया कि चीन में ऊर्जा सब्सिडी की वजह से बिजली की लागत इतनी कम है कि चीनी कंपनियां Nvidia के H20 चिप्स के विकल्प चला रही हैं, फिर भी उनका कुल खर्च कम है.
हुआंग का ये कहना कि चीन में बिजली मुफ्त है, आपको ये लग रहा होगा कि ये तो कुछ ज्यादा ही बोल गए, लेकिन नहीं, चीन ने सोलर + बैटरी स्टोरेज तकनीक में इतनी तेज तरक्की की है कि बिजली का खर्च अमेरिका की तुलना में बहुत कम हो गया है. हुआंग ने चीन वाला ये बयान ऐसे समय पर दिया है, जब वे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को यह समझाने की कोशिश कर रहे थे कि Nvidia के नए ब्लैकवेल चिप्स को चीन को एक्सपर्ट करने की इजाजत दें, बदले में चीन से रेयर अर्थ की सप्लाई ली जाए, लेकिन ट्रम्प के सलाहकारों, खासकर विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताकर रोक दिया. नतीजा ये हुआ कि चीन ने अपनी स्वदेशी चिप्स पर और तेजी से काम शुरू कर दिया, जो कि अमेरिका की AI में बादशाहत को चुनौती देगा.
'सबसे बड़ी दिक्कत कंप्यूट ग्लट नहीं, ऊर्जा है'
1 नवंबर को Bg2 Pod पॉडकास्ट में माइक्रोसॉफ्ट के सत्या नडेला ने माना कि सबसे बड़ी दिक्कत कंप्यूट ग्लट नहीं, ऊर्जा है. नडेला ने कहा कि चिप्स का स्टॉक बढ़ रहा था क्योंकि माइक्रोसॉफ्ट के पास अपने कुछ डेटा सेंटर्स के लिए पर्याप्त बिजली नहीं थी. नडेला ने कहा कि अब हमारी सबसे बड़ी समस्या कंप्यूट ग्लट नहीं, बल्कि बिजली है. कंप्यूट ग्लट का मतलब है कंप्यूटिंग पावर (प्रोसेसिंग क्षमता) की अति-उपलब्धता होना, यानी AI चिप्स, GPU, TPU जैसी हार्डवेयर की मात्रा इतनी ज्यादा हो जाए कि उसका पूरा इस्तेमाल न हो पाए.
इसके पहले 30 अक्टूबर को अमेजन के CEO एंडी जेसी ने भी कहा कि इंडस्ट्री में क्षमता तो आ रही है, लेकिन मुश्किल ऊर्जा की कमी को लेकर है. मतलब AI की रफ्तार अब चिप्स नहीं, बल्कि बिजली तय करेगी.
और यही वह जगह है जहां अमेरिका पिछड़ रहा है. चार बड़े अमेरिकी हाइपरस्केलर (मेटा, अल्फाबेट, अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट) का कुल कैपेक्स इस साल 360-370 बिलियन डॉलर और 2026 में 470 बिलियन डॉलर रहने का अनुमान है, लेकिन डेटा सेंटर्स के लिए बिजली नहीं है.
चीन ने क्या किया
जेफरीज की रिपोर्ट के मुताबिक, बैटरी स्टोरेज टेक्नोलॉजी में क्रांतिकारी प्रगति की वजह से चीन में सोलर कोल से सस्ता हो चुका है. 2025 के पहले 9 महीनों में चीन ने 240 GW सोलर कैपेसिटी जोड़ी, अमेरिका की कुल इंस्टॉल्ड सोलर कैपेसिटी (178 GW) से कहीं ज्यादा है. कुल मिलाकर चीन ने पिछले साल 429 GW नई पावर कैपेसिटी जोड़ी, जो अमेरिकी ग्रिड के एक-तिहाई से ज्यादा है. इसी दौरान सोलर और विंड से 250 TWh अतिरिक्त बिजली बनी, जबकि कुल डिमांड सिर्फ 170 TWh बढ़ी. यानी सोलर अकेले ने ही बढ़ती डिमांड पूरी कर दी, विंड और न्यूक्लियर ने कोल का शेयर घटाया.
ऐसे में चीन की बिजली की लागत बेहद अहम हो जाती है. वजह यह है कि वर्तमान पीढ़ी के चीनी AI चिप्स से एक ही मात्रा में टोकन्स बनाने के लिए बिजली की खपत Nvidia के H20 चिप्स की तुलना में करीब 30-50% ज्यादा लगती है. इसे दूर करने के लिए हाल ही में बीजिंग ने स्थानीय सरकारों को निर्देश दिया है कि वे चीनी टेक दिग्गजों को इनसेंटिव्स दें, डेटा सेंटर्स को बिजली के बिल में 50% तक की सब्सिडी दी जाए, बशर्ते वे केवल स्वदेशी चीनी चिप्स से चलें.
अमेरिका क्यों पिछड़ रहा?
अमेरिका कल की टेक्नोलॉजी (LNG, न्यूक्लियर) पर अड़ा है. कांस्टेलेशन एनर्जी जैसी यूटिलिटी स्टॉक्स ग्रोथ स्टॉक बन रही हैं, लेकिन सबसे तेज और सस्ता समाधान चीनी टेक्नोलॉजी इंपोर्ट करना है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ESG और ग्रीन पॉलिटिक्स की वजह से रिन्यूएबल्स का नैरेटिव खराब हुआ, जबकि चीन ने बिना ग्रीन एजेंडा के सिर्फ कॉस्ट और एनर्जी इंडिपेंडेंस के लिए बैटरी-सोलर सिस्टम बनाया.
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